टुकड़े टुकड़े दिन बीता

Thursday, September 11, 2008

टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसे को’ई कहता हो, ले फिर तुझ को मात मिली

मातें कैसी, घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली

-मीना कुमारी

1 comments:

Swapna December 22, 2008 at 12:29 PM  

this one is the best of all....... The shortest but says everything about the void in her life....

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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