इश्क क्या चीज़ है ये पूछिये परवाने से

Saturday, September 27, 2008

नज़्म - साहिर होशियारपुरी
इश्क क्या चीज़ है ये पूछिये परवाने से
जिंदगी जिस को मयस्सर हुयी जल जाने से

मौत का खौफ हो क्या इश्क के दीवाने को
मौत ख़ुद कांपती है इश्क के दीवाने से

हो गया ढेर वहीं आह भी निकली न कोई
जाने क्या बात कही शमा ने परवाने से

हुस्न बे-इश्क कहीं रह नहीं सकता ज़िंदा
बुझ गायी शमा भी परवाने के जल जाने से

खाए जाती है नदामत मुझे इस गफलत की
होश में आ के चला आया हूँ मयखाने से
[नदामत : shame; गफलत : neglect]

कर दिया गर्दिश-ऐ-अय्याम ने रुसवा "साहिर"
मुझ को शिकवा है यागाने से न बेगाने से

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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