Gulzar Sahab on his name ...

Thursday, September 4, 2008

A small verse written by Gulzar Sahab on how he got his name Gulzar is presented below. There he talks about a mysterious person who gave him this name, though noone know who she (he) was !

नाम सोचा ही न था, है कि नहीं
'अमाँ' कहके बुला लिया एक ने
'ए जी' कहके बुलाया दूजे ने
'अबे ओ' यार लोग कहते हैं
जो भी यूँ जिस किसी के जी आए
उसने वैसे ही बस पुकार लिया

तुमने एक मोड़ पर अचानक जब
मुझको 'गुलज़ार' कहके दी आवाज़
एक सीपी से खुल गया मोती
मुझको इक मानी मिल गए जैसे
-गुलज़ार

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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