अपनी तस्वीर को आँखों से ...

Saturday, January 9, 2010

नज़्म - शेहजाद अहमद


अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
इक नज़र मेरी तरफ भी तेरा जाता क्या है

मेरी रुस्वायी में वो भी हैं बराबर के शरीक़
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख कर अब हाथ हिलाता क्या है

उम्र भर अपने गरेबाँ से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साए से डराता क्या है

मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम
बुझ गायी बज़्म तो अब शमा जलाता क्या है

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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