आये कुछ अब्र ...

Sunday, February 14, 2010

नज़्म - फै अहमद 'फैज़'


आये कुछ अब्र कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो अज़ाब आये

[अब्र: Cloud; अज़ाब: Pain]

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफताब आये

[बाम--मीना: Heaven's terrace; माहताब: Moonlight; आफताब: Sunshine]

हर रग-ए-खून में फिर चराघाँ हो
सामने फिर वो बेनकाब आये

[चराघाँ : Lighting]

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

न गाई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इन्किलाब आये

[सरदारी: Tyranny]

इस तरह अपनी खामोशी गूँजी
गोया हर सिम्ट से जवाब आये

[गोया: As If; सिम्त: Direction]

'फैज़' थी राह सर-ब-सर मंजिल
हम जहाँ पहुंचे कामयाब आये

[
sar-ba-sar : Adjacent]

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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