आया ही नहीं हमको ...
Monday, June 20, 2011
नज़्म - बशीर बद्र
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुज़र जानाशीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना
तारों की तरह शब के सीने में उतर जाना
आहट न हो क़दमों की, इस तरह गुज़र जाना
नशे में सम्भलने का फन यौं ही नहीं आया
इन जुल्फों से सीखा है लहरा के सँवर जाना
भर जायेंगे आँखों में आँचल से बंधे बादल
याद आएगा जब गुल पर शबनम का बिखर जाना
हर मोड़ पे दों आँखें हम से यही कहती हैं
जिस तरह भी मुमकिन हो तुम लौट के घर जाना
ये चाँद सितारे तुम औरों के लिए रख लो
हम को यहीं जीना है हम को यहीं मर जाना
जब टूट गया रिश्ता सरसब्ज़ पहाड़ों से
फिर तेज़ हवा जाने हम को है किधर जाना
1 comments:
वाह! बहुत ही अच्छा संग्रह है यहाँ ..
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