तुम न आए ...

Monday, September 1, 2008

तुम न आए एक दिन का वादा कर दो दिन तलक
हम पड़े तडपा किए दो दो पहर दो दो दिन तलक

दर्द-ऐ-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन
रहता है उस नाज़नीन को दर्द-ऐ-सर दो दिन तलक

देखते हैं ख्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ऐ-मस्त
रहते हैं हम दो जहाँ से बेखबर दो दिन तलक

गर यकीन हो ये हमें आएगा तू दो दिन के बाद
तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक

क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये
घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक

-ज़फ़र

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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