यार था, गुलज़ार था ...
Monday, September 1, 2008
यार था, गुलज़ार था बाद-ऐ-सबा थी मैं न था
लायक-ऐ-पाबोस-ऐ-जान क्या हिना थी मैं न था
हाथ क्यों बंधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोखी-ऐ-रंग-ऐ-हिना थी मैं न था
मैंने पूछा क्या हुआ वो आप क्या हुस्न-ओ-शबाब
हंस के बोला वो सनम शान-ऐ-खुदा थी मैं न था
मैं सिसकता रह गया और मर गए फरहाद-ओ-कैस
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में कज़ा थी मैं न था
-जफ़र
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