बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
Wednesday, September 3, 2008
मेहँदी हसन साब की आवाज़ में बहादुर शाह ज़फर की बेहतरीन नज़्म -
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-करार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ऐ-कातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई कातिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आंखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
अक्स-ऐ-रुख-ऐ-यार ने किस से है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह-ऐ-कामिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है "ज़फर" से हर बार
खू तेरी हूर-ऐ-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
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