किसी मौसम का झोंका

Wednesday, September 3, 2008

Gulzar at his best from the Movie Raincoat

किसी मौसम का झोंका था
जो इस दीवार पर लटकी हुयी तस्वीर तिरछी कर गया है
गए सावन में ये दीवारें यूँ सीलीं नही थी
न जाने इस दफा क्यूँ इनमें सीलन आ गई है
दरारें पड़ गयीं हैं
और सीलन इस तरह बहती है
जैसे खुश्क रुखसारों पे गीले आँसू चलते हैं
हवा की साँस क्यूँ सहमी हुई है
मेरी वाकिफ थी जब आती थी कमरे में
मेरे सीनें में भर जाती थी
जैसे बादबाँ उभरते हैं कश्ती के

ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर की खिड़कियों के कांच पर
उंगलियों से लिख जाती थी संदेशे
बिलखती रहती है बैठी हुयी अब बंद रौशंदानों के पीछे
दोपहरें ऐसी लगती हैं
बिना मोहरों के खाली खाने रक्खें हैं
न कोई खेलनेवाला है बाज़ी और
न कोई चल चलता है
न दिन होता है अब
न रात होती है
सभी कुछ रुक गया है
वो क्या कोई मौसम का झोंका था ?
जो इस दीवार पे लटकी तसवीर तिरछी कर गया है

-गुलज़ार

Also find Gulzar Sahab's narration of it at Gautam Dhar's website:
Mausam Ka Jhonka

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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