कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
Wednesday, September 3, 2008
कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूँ
जुनून ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
खुदी ये कहती है मोड़ मुड जा
अगर्चे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झांकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वों भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ऐ-दिल में दर्द होगा
उसे ये जिद है की मैं पुकारूं
मुझे तकाजा है वो बुला ले
कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूँ
-गुलज़ार
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