मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर
Wednesday, September 3, 2008
मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर
मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है
सहम के सब आरजूएं कोनों में जा छुपी हैं
लावें बुझा दी हैं अपने चेहरों की, हसरतों ने
की शौक़ पहचानता ही नहीं
मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं
की अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर
-गुलज़ार
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