लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
Wednesday, September 3, 2008
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ऐ-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ऐ-दागदार में
उम्र-ऐ-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में
कितना है बदनसीब "ज़फर" दफन के लिए
दो गज ज़मीन भी न मिली कू-ऐ-यार में
-ज़फर
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