पास-ऐ-मार्ग मेरे मज़ार पर
Wednesday, September 3, 2008
पास-ऐ-मार्ग मेरे मज़ार पर जो चिराग किसी ने जला दिया
उसे आह दामन-ए-बाद ने सरे शाम ही से बुझा दिया
मुझे दफन करना तू जिस घड़ी तो ये उस से कहना की ऐ परी
वो जो तेरा आशिक-ऐ-ज़ार था तह-ऐ-ख़ाक उसे दबा दिया
दम-ए-गुस्ल से मेरे पेश्तर उसे हमदमों ने ये सोच कर
कहीं जावे उस का न दिल दहल मेरी लाश पर से हटा दिया
मेरी आँख झपकी थी एक पल मेरे दिल ने चाहा की उठ के चल
दिल-ऐ-बेकरार ने ओ मियाँ वहीं चुटकी लेके जगा दिया
ज़रा उन की शोखी तो देखिये लिए जुल्फ-ऐ-खमशुदा हाथ में
मेरे पीछे आए दबे-दबे मुझे साँप कह के डरा दिया
मैं ने दिल दिया मैं ने जान दी मगर आह! तूने न कद्र की
किसी बात को जो कहा कभी उसे चुटकियों में उड़ा दिया
-ज़फर
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