चलो ना भटके
Wednesday, September 3, 2008
चलो ना भटके
लफंगे कूचों में
लुच्ची गलियों के
चौक देखें
सुना है वो लोग
चूस कर जिन को वक़्त ने
रास्ते में फेंका था
सब यहीं आके बस गए हैं
यह छिलके हैं जिंदगी के
इन का अर्क निकालो
की ज़हर इन का
तुम्हारे जिस्मों में
ज़हर पलते हैं
और जितने वो मार देगा
चलो ना भटके
लफंगे कूचों में
-गुलज़ार
0 comments:
Post a Comment