पत्थर के खुदा वहाँ भी पाये
Thursday, September 4, 2008
पत्थर के खुदा वहाँ भी पाये
हम चाँद से आज लौट आए
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गया मेहरबान साए
जंगल की हवाएं आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड़ न जाए
लैला ने नया जनम लिया है
है कैस कोई जो दिल लगाए
है आज ज़मीन का गुसल-ए-सहत
जिस दिल में हो जितना खून लाये
सेहरा सेहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आए
-कैफ़ी आज़मी
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