तेरे करीब आके बड़ी उलझनों में हूँ
Monday, September 8, 2008
तेरे करीब आके बड़ी उलझनों में हूँ
मैं दुश्मनों में हूँ के तेरे दोस्तों में हूँ
मुझ से गुरेज़ पा है तो हर रास्ता बदल
मैं संग-ऐ-राह हूँ तो सभी रास्तों में हूँ
बदला न मेरे बाद भी मोजो-ऐ-गुफ्तुगू
मैं जा चुका हूँ फिर भी तेरी महफिलों में हूँ
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोयेगा उमर भर
ये सोच ले के में भी तेरी ख्वायिशों में हूँ
-फ़राज़
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