वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
Tuesday, September 30, 2008
नज़्म - मिर्जा ग़ालिब
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँवो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ
फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ
[ज़ौक़ : delight]
दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त-ओ-ख़ाल कहाँ
थी वो इक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
[रानाई-ए-ख़याल : tender thoughts]
ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ
हमसे छूटा क़िमारख़ाना-ए-इश्क़
वाँ जो जायेँ गिरह में माल कहाँ
[किमारखाना : casino]
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
मुज़महिल हो गये क़ुवा "ग़ालिब"
वो अनासिर में ऐतदाल कहाँ
[मुज़महिल : lethargic; क़ुवा : powers; अनासीर : elements; ऐतदाल : moderation]
Jagjit Singh साब की आवाज़ में सुनिए -
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