कहा था किस ने के अहद-ऐ-वफ़ा करो उस से

Monday, September 8, 2008

कहा था किस ने के अहद-ऐ-वफ़ा करो उस से
जो यूं किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उस से

ये अहल-ऐ-बाज़ तुनक हौसला सही फिर भी
ज़रा फ़साना-ऐ-दिल इब्तिदा करो उस से

ये क्या के तुम ही गम-ऐ-हिज्र के फ़साने कहो
कभी तो उस के बहाने सुना करो उस से

नसीब फिर को_ई तकरीब-ऐ-करब हो के न हो
जो दिल में हों वही बातें किया करो उस से

'फ़राज़' तर्क-ऐ-ताल्लुक़ तो खैर क्या होगा
यही बहुत है के कम से कम मिला करो उस से

-फ़राज़

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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