अहल-ऐ-दिल और भी हैं
Friday, September 12, 2008
नज़्म : साहिर लुधियानवी
अहल-ऐ-दिल और भी हैं अहल-ऐ-वफ़ा और भी हैंएक हम ही नहीं दुनिया से खफा और भी हैं
क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़बानें चुप हैं
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं
[शाहिद : witness]
हम पे ही ख़त्म नहीं मसलक-ऐ-शोरीदासरी
चाक-ऐ-दिल और भी है चाक-ऐ-काबा और भी हैं
[मसलक-ऐ-शोरीदासरी : rebellious ways; काबा : long gown]
सर सलामत है तो क्या संग-ऐ-मलामत की कमी
जान बाकी है तो पैकान-ऐ-काजा और भी हैं
[मलामत : accusations; पैकान : arrow; काजा : death]
मुंसिफ-ऐ-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाए
लोग कहते हैं के अरबाब-ऐ-जफा और भी हैं
[वहदत : unity]
2 comments:
आपका स्वागत है, शुभकामनाऐँ.
dhanyawaad tarun jee :)
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