खुश्बू जैसे लोग मिले अफ़साने में

Saturday, September 13, 2008

नज़्म - गुलज़ार

खुश्बू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में

जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोडा वक़्त लगे
ज़रा सी धूप उँडेल मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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