इक लफ्ज़-ऐ-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है

Thursday, October 2, 2008

नज़्म - जिगर मुरादाबादी
इक लफ्ज़-ऐ-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ऐ-आशिक फैले तो ज़माना है

ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आंखों में तसबीह का दाना है
[तसबीह का दाना : Bead]

हम इश्क के मारों का इतना ही फसाना है
रोने को नहीं कोई हंसाने को ज़माना है

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है
सब दिल की शरारत है आंखों का बहाना है

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

वो हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है मरना का ज़माना है

या वो थे खफा हम से या हम थे खफा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है

अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है
[तबस्सुम : Smile]

आंखों में नमी सी है चुप-चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

है इश्क-ऐ-जुनून-पेशा हाँ इश्क-ऐ-जुनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंस हंस के रुलाना है

ये इश्क नहीं आसान इतना तो समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

आंसू तो बहोत से हैं आंखों में 'जिगर' लेकिन
बिंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना
[बिंध : To string]

3 comments:

Unknown October 3, 2008 at 1:31 AM  

chha gaye janab
puri ghazal padkar to maza aa gaya

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA July 28, 2011 at 12:36 AM  

खूबसूरत नज़्म को देवनागरी मे पेश करने का शुक्रिया!

Arsh July 28, 2011 at 11:01 PM  

I am glad you liked it :)

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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