दिल गया रौनके हयात गई

Saturday, October 4, 2008

नज़्म - जिगर मुरादाबादी
दिल गया रौनक-ऐ हयात गई
ग़म गया सारी कायनात गई

दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र
लब तक आई न थी के बात गई

उनके बहलाए भी न बहला दिल
गएगां सईये-इल्तफ़ात गई
[इल्तफ़ात : Kindness]

मर्ग-ऐ-आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन
इक मसीहा-नफ़स की बात गई
[मर्ग : Death]

हाए सरशरायां जवानी की
आँख झपकी ही थी के रात गई

नहीं मिलता मिज़ाजे-दिल हमसे
ग़ालिबन दूर तक ये बात गई
[ग़ालिबन : Probably]

कैद-ऐ-हस्ती से कब निजात 'जिगर'
मौत आई अगर हयात गई

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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