तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती
Saturday, October 4, 2008
नज़्म - साहिर लुधिआनवी
तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होतीनशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती
तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं
तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती
ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन
ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती
तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है
फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती
1 comments:
shukiryaa yeh nazm yaad dilaane kaa!
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