तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती

Saturday, October 4, 2008

नज़्म - साहिर लुधिआनवी
तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती
नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती

तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं
तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती

ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन
ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती

तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है
फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती

1 comments:

Vinay October 4, 2008 at 11:36 PM  

shukiryaa yeh nazm yaad dilaane kaa!

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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