हम के ठहरे अजनबी
Monday, October 6, 2008
नज़्म - फैज़ अहमद फैज़
हम के ठहरे अजनबी इतने मदारातों के बादफिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद
[मदारातों : hospitality]
कब नज़र में आयेगी बेदाग़ सब्जे की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ऐ-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद
[मुनाजातों : prayers]
थे बहुत बेदर्द लम्हें ख़त्म-ऐ-दर्द-ऐ-इश्क के
थीं बहुत बेमहर सुबहें मेहरबान रातों के बाद
उन से जो कहने गए थे "फैज़" जान सदका किए
अनकही ही रह गई वो बात सब बातों के बाद
1 comments:
thanx a lot for the music.
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