गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
Monday, October 20, 2008
नज़्म - फिराक़ गोरखपुरी
गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैंआप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं
वाकई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
ना वफ़ा कहते हैं जिस को ना ज़फ़ा कहते हैं
हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं
तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं
शिकवा-ए-हिज्र करें भी तो करें किस दिल से
हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं
तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयान नामुमकिन
फायदा क्या है मगर यूं जो जरा कहते हैं
लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को
हम तो इन बातों अच्छा ना बुरा कहते हैं
औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो फ़िराक
तल्खी-ए-ज़ीस्त को जीने का मजा कहते हैं
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