पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी

Saturday, September 6, 2008

I feel honoured to be among the few lucky ones to hear this nazm from Gulzar Sahab himself during his interaction with IISc community at J.N. Tata Auditorium, Indian Institute of Science, Bangalore on August 28, 2008.

इस नज़्म में गुलज़ार साहब खुदा के साथ शतरंज की बाजी लगाए हुए हैं। खुदा की चालों का इतना खूबसूरत जबाब शायद ही किसी और शायर ने इतने खूबसूरत अंदाज़ में दिया हो। गौर फरमाइए -

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने

काले घर में सूरज चलके , तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे
मैंने एक चराग जला कर रोशनी कर ली
अपना रास्ता खोल लिया

तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया
मैंने noah की कश्ती उसके ऊपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़कर
लम्हा लम्हा जीना सीख लिया

मेरी खुदी को मारना चाहा तुमने चंद चमत्कारों से
और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते
तेरा चाँद का मोहरा मार लिया

मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया
और रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी

-गुलज़ार

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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