रंजिश ही सही

Monday, September 8, 2008

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ऐ-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

एक उम्र से हूँ लज्ज़त-ऐ-गिरिया से भी महरूम
ए राहत-ऐ-जान मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ऐ-खुशफहमी को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिए आ

-फ़राज़

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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