चाँद तन्हा है आसमां तनहा
Wednesday, September 10, 2008
चाँद तन्हा है आसमां तनहा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तनहा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तनहा
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जान तनहा
हम-सफर को’ई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा तनहा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तनहा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा
-मीना कुमारी
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