चाँद तन्हा है आसमां तनहा

Wednesday, September 10, 2008

चाँद तन्हा है आसमां तनहा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तनहा

बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तनहा

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जान तनहा

हम-सफर को’ई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा तनहा

जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तनहा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा

-मीना कुमारी

0 comments:

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

  © Columnus by OurBlogTemplates.com 2008

Back to TOP