एक वीरान सी ख़ामोशी में
Thursday, September 11, 2008
एक वीरान सी ख़ामोशी में
कोई साया-सा सरसराता है
ग़म की सुनसान काली रातों में
दूर एक दीप टिमटिमाता है
गोया तेरे मरीज़-ऐ-उल्फत का
साँस सीने में थम के आता है
[गोया : As If]
मेरे अश्कों के आईनों में आज
कौन है वह जो मुस्कुराता है
कौन दस्तक-सी देता रहता है
कैसा पैगाम आता जाता है
एक गुमनाम रास्ते का निशाँ
लम्हा लम्हा किसे बुलाता है
क्यों एक अजनबी सदा पे 'नाज़'
रूह का हर तार झनझनाता है
-मीना कुमारी
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