मैं एहावाल-ऐ-दिल मर गया कहते कहते
Monday, September 15, 2008
नज़्म - मोमिन खान
मैं एहावाल-ऐ-दिल मर गया कहते कहतेथके तुम न "बस, बस, सूना!" कहते कहते
मुझे चुप लगी मुद्द'आ कहते कहते
रुके हैं वो जाने क्या कहते कहते
ज़बान गुंग है इश्क में गोश कर है
बुरा सुनते सुनते भला कहते कहते
शब्-ऐ-हिज्र में क्या हजूम-ऐ-बला है
ज़बान थक गई मरहबा कहते कहते
गिला हर्जा-गर्दी का बेजा न था कुछ
वो क्यूँ मुस्कुराए बजा कहते कहते
साद अफसोस जाती रही वस्ल की शब
"ज़रा ठहर ए बेवफा" कहते कहते
चले तुम कहाँ मैं ने तो दम लिया था
फ़साना दिल-ऐ-जार का कहते कहते
सितम हाय! गर्दूँ मुफस्सिल न पूछो
के सर फिर गया माजरा कहते कहते
नहीं या सनम 'मोमिन' अब कुफ्र से कुछ
के खू हो गई है सदा कहते कहते
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