शोला था जल-बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो

Friday, September 12, 2008

मेहँदी हसन साब की आवाज़ में अहमद फ़राज़ साब के दिल की आवाज़ सुनिए -



शोला था जल-बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो जिंदगी की दुआएं मुझे न दो

यह भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी
ऐ खुश्खाने-शहर क़बायें मुझे न दो

ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो

कब मुझ को ऐतेराफ़-ऐ-मुहब्बत न था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सजाएं मुझे न दो

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यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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