क्या रुखसत-ऐ-यार की घड़ी थी
Friday, September 12, 2008
क्या रुखसत-ऐ-यार की घड़ी थी
हंसती हुई रात रो पडी थी
हम ख़ुद ही हुए तबाह वरना
दुनिया को हमारी क्या पडी थी
ये ज़ख्म हैं उन दिनों की यादें
जब आप से दोस्ती बड़ी थी
जाते तो किधर को तेरे वहशी
ज़ंजीर-ऐ-जुनून कड़ी पड़ी थी
गम थे कि 'फ़राज़' आंधियां थी
दिल था कि 'फ़राज़' पंखुडी थी
-फ़राज़
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