मेरा माजी

Thursday, September 11, 2008

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं की मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी जी एक बड़ी शायरा भी थी। उनको Tragedy Queen के नाम से भी जाना जाता था। उनके निजी जीवन में जो दर्द था वोह सब उन्होंने कलम कर दिया कागज़ पर। मैंने एक कोशिश मात्र की है उनकी कुछ नज्में आप तक पहुँचने की, आशा करता हूँ आपको पसंद आएँगी।

मेरा माजी मेरी तनहाई का ये अंधा शिगाफ
ये के साँसों की तरह मेरे साथ चलता रहा
जो मेरी नब्ज़ की मानिंद मेरे साथ जिया
जिसको आते हुऐ जाते हुऐ अक्सर लम्हे
अपने अहसास को शिद्दत से तपिश देते रहे
ज़ख्म की आँख से टपका हुआ यह गर्म लहू
दूसरे लोगों की तस्कीन का समान हुआ
कोई ऐसा भी न था जिसने इसे परखा हो
या अचानक ही पलट आया हो, पहचाना हो
मेरे माज़ी!
मेरे हमराज़!
मेरी जलती उदासी के शरीक
तेरी आहें, तेरे नासूर, तेरे दर्द तमाम
उनसे रिश्ता है मेरा, आज ये सब मेरे हैं
[शिगाफ : Crack; तस्कीन : Comfort]

-मीना कुमारी

8 comments:

Udan Tashtari September 11, 2008 at 7:36 PM  

आपका स्वागत है.. अब नियमित लिखें. शुभकामनाऐँ.

कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी

शोभा September 11, 2008 at 7:47 PM  

बहुत सुंदर लिखा है. स्वागत है आपका.

Amit K Sagar September 11, 2008 at 8:01 PM  

सुन्दर.वधाई.

रश्मि प्रभा... September 11, 2008 at 10:03 PM  

मेरे माज़ी!
मेरे हमराज़!
मेरी जलती उदासी के शरीक
तेरी आहें, तेरे नासूर, तेरे दर्द तमाम
उनसे रिश्ता है मेरा, आज ये सब मेरे हैं.......
यही रिहते तो साथ चलते हैं.....
बहुत ही सुन्दर

रंजन राजन September 11, 2008 at 11:28 PM  

आशा है भविष्य में भी ऐसी अच्छी चीजें प्रस्तुत करेंगे।
लगातार लिखें और दूसरों को भी टिप्पणियों से उत्साहित करते रहें। शुभकामनाएं।

Pawan Mall September 12, 2008 at 9:12 AM  

bahut badiya lekh hain

kripya karke is paheli ka uttar de



अन्दर-अन्दर सब रस चूसै , बाहर से तन-मन-धन मूसै ।
जाहिर बातन में अति तेज , का सखि साजन नहिं अंगरेज ॥

वैभव Vaibhav September 14, 2008 at 10:51 AM  

तो ये आप हैं ... मैंने कहा ये कौन अर्श है भाई ....

btw, मीना कुमारी के शायर होने के बारे में मैंने कहीं पहले पढ़ा था .
"उनके निजी जीवन में जो दर्द था" ... सबसे सही नजरिया है उन्हें समझने का क्यूंकि, शायद उनकी biography थोडी देखी है, उनके जीवन में वास्तव में बहुत दर्द था.

प्रदीप मानोरिया September 18, 2008 at 6:45 PM  

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है बहुत सटीक लिखते हैं समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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