लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है
Friday, September 12, 2008
नज़्म : फरहत शहजाद
लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है।
हुस्न जितना है गाहे-गाहे में
कब मुलाकात बार-बार में है।
जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।
ज़िन्दगी भर की चाहतों का सिला
दिल में पैवस्त मू के ख़ार में है।
[मू : Hair; ख़ार : A linen covering for a woman’s head, throat, and chin]
क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।
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