कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
Thursday, September 18, 2008
नज़्म - अहमद फ़राज़
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफर थोड़ी दूर साथ चालो
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो
ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो
अभी तो जाग रहे हैं चिराग राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो
तवाफ-ऐ-मंजिल-ऐ-जानां हमें भी करना है
'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो
[तवाफ-ऐ-मंजिल-ऐ-जानां : circumambulation of the house of beloved]
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