दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
Tuesday, September 23, 2008
नज़्म - जावेद अख्तर
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैंज़ख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं
रास्ता रोके खडी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं
नर्म आवाज़ भली बातें मोहज्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते है
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