दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं

Tuesday, September 23, 2008

नज़्म - जावेद अख्तर
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं

उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं

रास्ता रोके खडी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं

नर्म आवाज़ भली बातें मोहज्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते है

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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