तू इस कदर मुझे अपने करीब लगता है
Tuesday, September 23, 2008
नज़्म - जान निसार अख्तर
तू इस कदर मुझे अपने करीब लगता हैतुझे अलग से जो सोचूँ, अजीब लगता है
जिसे न हुस्न से मतलब न इश्क से सरोकार
वो शख्स मुझ को बहुत बद-नसीब लगता है
हुदूद-ऐ-जात से बाहर निकल के देख ज़रा
न कोई गैर, न कोई रकीब लगता है
[हुदूद : boundaries; जात : self]
ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहतें ये खुलूस
कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है
[खुलूस : sincerity]
उफक पे दूर चमकता हवा कोई तारा
मुझे चराग़-ऐ-दयार-ऐ-हबीब लगता है
[उफक : horizon]
न जाने कब कोई तूफ़ान आएगा यारों
बुलंद मौज से साहिल करीब लगता है
1 comments:
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
न जाने कब कोई तूफ़ान आएगा यारों
बुलंद मौज से साहिल करीब लगता है
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