बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

Monday, September 15, 2008

नज़्म - फिराक़ गोरखपुरी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ए जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

मेरी नज़रें भी ऐसे कातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं

तबियत अपनी घबराती है जब सुन-सान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

ख़ुद अपना फैसला भी इश्क में काफी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं

जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरहा मानी जान लेते हैं

तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ऐ-उल्फत में
हम अपने सर तेरा ए दोस्त हर एहसान लेते हैं

हमारी हर नज़र तुझसे नयी सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैगाम लेते हैं

'फिराक़' अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफिर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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