ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
Friday, September 12, 2008
कुछ दिन पहले ही इस सदी के एक सबसे बड़े शायर अहमद फ़राज़ साहब हमारे बीच नहीं रहे। उनकी एक बहुत ही खूबसूरत नज़्म सुनने और पड़ने को मिली, दोनों रूप आपके सामने पेश कर रहा हूँ, एक गुलाम अली साब की रेशमी आवाज़ में और दूसरा काले अक्षरों के लिबास में -
zindigi_se_yahi.mp... |
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे
-फ़राज़
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