मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
Thursday, September 11, 2008
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मस्जिदों ने दी सजा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी साँस भी रूकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हाथ जो बढते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
यह जो ज़ख्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
[कज़ा : Destiny, Judgement]
सभी कि आँखें सुर्ख हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्श-ऐ-पा आयें नज़र
यह तो रास्ते कि गर्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
[ज़र्द : Pale]
-मीना कुमारी
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