तंग आ चुके हैं कशमकश-ऐ-जिंदगी से हम
Tuesday, September 16, 2008
साहिर साहब की लिखी हुयी यह नज्म फ़िल्म प्यासा में रफी साब ने बहुत खूबसूरती से गायी है। मौक़ा था कॉलेज Reunion का और हमारे बरबाद शायर (Played by गुरु दत्त साब) घूमते घामते कहीं से पहुँच गए, सबने कुछ न कुछ तेहरीर की और जब गुरु दत्त साब को कुछ कहने की जिद की गयी तो उन्होंने यह नज़्म सुनायी -
तंग आ चुके हैं कशमकश-ऐ-जिंदगी से हम
ठुकरा ना दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम
मायूसी-ऐ-माल-ऐ-मोहब्बत ना पूछिये
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
[माल=consequence]
लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ऐ-उम्मीद
लो अब कभी गिला ना करेंगे किसी से हम
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वल-वले
गो दब गए हैं बार-ऐ-गम-ऐ-जिंदगी से हम
गर जिंदगी में मिल गए फिर इत्तफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
अल्लाह रे फरेब-ऐ-मसहीयत के आज तक
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे खामोशी से हम
हम गम-ज़दा हैं लाये कहाँ से खुशी के गीत
देंगे वही जो पायेंगे इस जिंदगी से हम
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