ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
Monday, September 15, 2008
नज़्म - मोमिन खान
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हमपर क्या करे के हो गए नाचार जी से हम
हम से न बोलो तुम इसे क्या कहते हैं भला
इन्साफ कीजे पूछते हैं आप ही से हम
क्या गुल खिलेगा देखिये है फ़स्ल-ऐ-गुल तो दूर
और सू-ऐ-दस्त भागते हैं कुछ अभी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना आशना
क्यूँ अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
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