ये न थी हमारी किस्मत

Monday, September 15, 2008

नज़्म - ग़ालिब

ये न थी हमारी किस्मत के विसाल-ऐ-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
के खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना की बंधा था अह्दबोदा
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तवार होता
[उस्तवार : firm]

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ऐ-नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
[नीमकश=half]

ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई गमगुसार होता
[नासेह : councellor; चारासाज़ : healer]

रग-ऐ-संग से टपकता वो लहू की फिर न थमता
जिसे गम समझ रहे हो ये अगर शरार होता

गम अगरचे जानगुसिल है, पे कहाँ बचें के दिल है
गम-ऐ-इश्क गर न होता, गम-ऐ-रोज़गार होता
[जान्गुलिस : life threatning ]

कहूँ किस से मैं के क्या है, शब-ऐ-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ऐ-दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता
[गर्क : sink]

उसे कौन देख सकता की यगना है वो यकता
जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो चार होता
[यगना : kinsman, यकता : matchless, दुई : duality ]

ये मसाइल-ऐ-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'ग़ालिब'
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख्वार होता
[मसाइल=topics, तसव्वुफ़=mysticism, वली=friend, बादाख्वार=drinker]

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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