वो कोई और न था चंद खुश्क पत्ते थे

Thursday, September 18, 2008

नज़्म : अहमद नदीम कासमी
वो कोई और था चंद खुश्क पत्ते थे
शजर से टूट के जो फसल-ऐ-गुल पे रोये थे

अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया
अभी अभी तो हम एक-दूसरे से बिछडे थे

तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली
कली कली में खिजां के चिराग जलते थे

तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे
ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे

शब-ऐ-खामोश को तन्हाई ने ज़बान दे दी
पहाड़ गूँजते थे दस्त सनसनाते थे

वो एक बार मरे जिन को था हयात से प्यार
जो जिंदगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे

नए ख़याल अब आते हैं ढल के ज़हन में
हमारे दिल में कभी खेत लहलहाते थे

ये इरतिक़ा का चलन है कि हर ज़माने में
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे
[इरातिका : progressive]

'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
की एक चहरे के पीछे हज़ार चहरे थे

1 comments:

प्रदीप मानोरिया September 20, 2008 at 6:29 PM  

VERY NICE PRESENTATION AND THANX TO MAKE REMEMBER THIS MILESTONE GAZAL
BE SPARE LITTLE TIME VISIT MY BLOG AGAIN

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बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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