कब वो सुनता है कहानी मेरी

Tuesday, November 11, 2008

नज़्म - मिर्जा ग़ालिब
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी

ख़लिशे-गमजा-ए-खूँरेज़ ना पूछ
देख खुनबफ़िशानी मेरी

क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर अशुफ़्ता-बयानी मेरी

हूँ ज़िखुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़्याल
भूल जाना है निशानी मेरी

मुत्काबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी

क़द्रे-संगे-सरे-राह रखता हूँ
सख़्त अर्ज़ान है गिरानी मेरी

दहन उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी है चमनदानी मेरी

कर दिया ज़ौफ़ ने अज़ीज़ "ग़ालिब"
नंगे-पीरी है जवानी मेरी

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क्या मिलेगा यहाँ ?

यहाँ आपको मशहूर शायरों की बेहतरीन नज़में पढने को मिलेंगीइस जगह का मकसद उन बेशुमार नगीनों पे ज़िक्र करना और उनको बेहतर तरीके से समझना हैजहाँ भी मुमकिन है, वहाँ ग़ज़ल को संगीत के साथ पेश किया गया है

बेहतरीन

जब हम चले तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो, ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुके साथ रुके शाम-ऐ-बेकसी
जब तुम रुको, बहार रुके चांदनी रुके
-जलील मानकपुरी

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