हमदम
Sunday, September 13, 2009
नज़्म - गुलज़ार
मोड़ पे देखा है वह बूढा सा पेड़ कभी ?मेरा वाकिफ है बहुत सालों से मैं उसे जानता हूँ
जब मैं छोटा था तो एक आम उडाने के लिए
परली दीवार से कन्धों पे चढा था उसके
जाने दुखती हुयी किस शाख से जा पाँव लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फैंके थे पत्थर उस पर
मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें दे कर
मेरी वेदी का हवन गर्म किया था उसने
और जब हामला थी बीबा तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरफ़ कैरियाँ फेंकी थी इसी ने
वक़्त के साथ सभी फूल सभी पत्ते गए
तब भी जल जाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
हाँ उसी पेड़ से आया है तू पेड़ का फल है
अब भी जल जाता हूँ जब मोड़ गुज़रते में कभी
खाँसकर कहता है क्यों सर के सभी बाल गए
सुबह से काट रहे हैं कमिटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नही होती मुझको
1 comments:
ब्लॉगिंग क उपयोग लोग आम तौर पर भड़ास निकालने हेतु करते हैं ,पर आप अच्छी चुनी सामग्री पोस्ट कर ब्लॉगिंग का सदुपयोग कर रहे हैं
साधुवाद
श्यम सखा श्याम
Post a Comment